बीकानेर।
प्रख्यात कवि-नाटककार व विचारक डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा है कि शब्द ही साधना आसान नहीं है। रचनाकर्म एक गंभीरकर्म है, जिसे कुछ लोगों ने सोशल-मीडिया की विषय-वस्तु बना दिया है। सृजन एक आनुष्ठानिक कर्म है, जिसे बावरा जी के समर्पण से समझा जा सकता है। आज उनके निर्वाण दिवस पर उनके पुत्र संजय ने समाज को तीन कृतियां भेंट करते हुए सच्ची श्रद्धा्रंजलि अर्पित की है। डॉ.चारण ने यह उद्गार स्थानीय नरेंद्रङ्क्षसह ऑडिटोरियम में जनकवि बुलाकीदास बावरा की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। इस अवसर कवि-कथाकार संजय पुरोहित की तीन कृतियों का पाठककार्पण भी डॉ.चारण ने किया। चारण ने कहा कि आज के समय में रचनाकारों का यह दायित्व है कि वे ऐसे समाज को बनाने की प्रक्रिया में लगे जहां रचना को मान दिया जाए।
पारायण फाउंडेशन और हिंदी विश्व भारती अनुसंंधान परिषद द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कवि-कथाकार संजय पुरोहित की तीन विभिन्न विधाओं की कृतियां कुण चितारो (राजस्थानी कविता), अहं सर्वस्वम् (हिंदी व्यंग्य संग्रह) और किताबों से गुजरते हुए (समीक्षा संग्रह) का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इतिहासविद्-साहित्यकार डॉ.गिरिजाशंकर शर्मा ने कहा कि बीकानेर की परंपरा में एक पिता अपनी विरासत में पुत्र को शब्द की विरासत सौंपता है। संजय पुरोहित ने सही अर्थों में अपने पिता की विरासत का संवंद्र्धन किया है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार व साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादीÓ ने कहा कि संजय की दृष्टि संवेदनात्मक अन्वेषण की है, जो उसे गंभीर रचनाकार बनाती है। संजय का शैली उत्सुकता जगाने वाली है।
तीन कृतियों के रचयिता संजय पुरोहित ने इस अवसर पर अपनी रचना-प्रक्रिया के संबंध में बताते हुए कहा कि किसी भी रचनाकार के लिए सबसे कठिन समय वह होता है, जब उसकी अनुभूतियां सघन होती है, लेकिन वह लिखने की बजाय अनुभूतियों का आनंद लेना चाहता है। मैंने ऐसे अनेक क्षणों का अवगाहन किया है। इन क्षणों ने मुझे बहुत सिखाया है।
प्रारंभ में कवयित्री मनीषा आर्य सोनी, व्यंग्यकार आत्माराम भाटी और आलोचक नगेंद्रनारायण किराड़ू ने लोकार्पित कृतियों पर अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत की। स्वागत भाषण व्यक्तित्व विकास प्रशिक्षक किशोरसिंह राजपुरोहित ने दिया। संचालन पत्रकार-साहित्यकार हरीश बी.शर्मा ने जताया। आभार राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व सचिन सत्यप्रकाश आचार्य ने स्वीकार किया। बावराजी की पौत्री प्रज्ञा और महिमा ने अपने दादा की लिखी सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
इस पाठकार्पण समारोह में शहर के गणमान्य लोगों ने भागीदारी की।
