देश में पिछले कई दशक से विभिन्न राजनीतिक पार्टियां यात्राओं के भरोसे सत्ता तक पहुंचने का प्रयास कर रही है और देखा जा रहा है कि इनका यह प्रयोग सफल भी होता दिख रहा है ।
आडवाणी की रथ यात्रा
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 1992 में रथ यात्रा निकालकर पूरे देश में राम मंदिर निर्माण का माहौल बनाया था । इसका असर यह रहा कि संसद में 2 सीटों वाली भारतीय जनता पार्टी आज बहुमत में है ।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा
इसी प्रकार हाशिए पर खड़ी कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी पिछले 100 दिनों से भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़े हैं । राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा का आयोजन और नेतृत्व कर रहे हैं । इस यात्रा में लोगों की भीड़ भी जुट रही है लेकिन देखना यह होगा कि इस यात्रा का असर आगामी होने वाले विभिन्न राज्यों की विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले संसद के लोकसभा चुनाव में इसका फायदा मिलता है या नहीं ।
बीजेपी की जन आक्रोश यात्रा – राजस्थान
राजस्थान में भी विपक्ष सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को घेरने के लिए पूरे राज्य में जन आक्रोश यात्रा भी निकाल रहा है । इन सभी यात्राओं के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजकल राजनीतिक पार्टियों के पास मुद्दे नहीं होने की वजह से यह लोग यात्राएं निकालकर सत्ता तक पहुंचने का प्रयास करते हैं । उनका मानना है कि जब यह पार्टियां सत्ता में होती है तो पूरे 5 वर्ष किसी भी तरह की यात्राएं नहीं निकालते हैं और सत्ता से बाहर होने पर भी यह लोग विपक्ष के रूप में भी 4 साल तक सत्तारूढ़ पार्टी का किसी भी यात्रा के माध्यम से विरोध दर्ज नहीं करवाते हैं लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं यह पार्टियों सत्ता पक्ष का विरोध जताने के लिए ऐसी यात्राओं का आयोजन करने लग जाती है ।
जनता शिक्षित और जागरूक है
जनता आजकल शिक्षित होने के कारण सब कुछ जानती है । युवाओं का कहना है कि यह केवल चुनावी स्टंट है । बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रही जनता का आजकल इन यात्राओं के प्रति विश्वास नहीं रहा है आडवाणी की रथ यात्रा के समय लोगों का राम मंदिर के प्रति भावनात्मक जुड़ाव था उसी वजह से उस यात्रा का सकारात्मक परिणाम सामने दिखा लेकिन अब युवा वर्ग को रोजगार की आवश्यकता है इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता रोजगार प्राप्त करना है ना कि ऐसी यात्राओं में जाकर अपना समय अनावश्यक नष्ट करना है ।